अभी कुछ समय पहले खबर थी कि मलेशिया में स्थापित किया गया है। जिस वक्त यह खबर पढ़ी, तभी से मन में ख्याल आया कि हमारे धर्म और इस्लाम में कितनी समानताएं हैं। हमारे यहां भी लड़कियों को शुरू से समझाया जाता है कि पति परमेर होता है। हर पतिव्रता नारी का कर्तव्य है कि वह अपने पति परमेर के हर आदेश को ईर का आदेश समझ कर उसका पालन करे। यही बात इस्लाम में भी कही गयी है। इसके बाद स्वाभाविक रूप से मेरे मन में उत्सुकता जगी कि हमारा तीसरा प्राचीन और लोकप्रिय धर्म यानी ईसाई धर्म स्त्रियों के लिए क्या निर्देश देता है या फिर ईसाई धर्म में स्त्रियों की क्या स्थिति है, तो वहां भी स्त्रियों के लिए कमोबेश वही निर्देश थे जो हिन्दू और इस्लाम में हैं। अब मैंने नेट पर बौद्ध, जैन और दूसरे धर्मों में स्त्रियों की स्थिति के बारे में उपलब्ध जानकारी को कुछ दूसरी साइट्स को देखा। वहां से पता चला कि लगभग हर धर्म इंसान के रूप में स्त्री और पुरुष में भेदभाव करता है। इससे पहले मैंने कभी भी इस विषय में गहराई से विचार नहीं किया था। अभी तक तो नारीवादियों द्वारा नारी को दोयम दर्जा दिए जाने की बात मुझे हमेशा मजाक ही लगाती थी क्योंकि समाज में मैंने बहुत से पुरु षों को अपनी घरवालियों के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत कार्य करते देखा था। मैंने ऐसे घर भी देखे हैं, जहां गृहस्वामिनी की अनुमति के बिना घर में पत्ता भी नहीं खड़कता। ऐसे में महिलाओं पर अत्याचार और उनके साथ भेदभाव की बात मुझे अतिशयोक्ति ही लगती थी। स्त्री स्वतंत्रता के समर्थक समाज में जिन बातों का विरोध करते नजर आते हैं, उन सब बातों के पीछे मुझे कहीं न कहीं महिलाओं की भलाई ही नजर आती थी पर इस बार मुझे हमारे धर्मो में वर्णित एक तर्क बिल्कुल भी समझ नहीं आया। मैंने देखा कि सभी धर्मों में माना जाता है कि स्त्री अपवित्र है। जैनियों की मान्यता है कि स्त्री पुरुष योनि में जन्म लिए बिना मुक्ति नहीं पा सकती। हमारे धर्मों का तर्क देखिए- स्त्री अपवित्र है क्योंकि उसे मासिक स्रव होता है। इस दौरान स्त्री को आराम मिलना चाहिए पर इस वजह से स्त्री के पूरे अस्तित्व को अपवित्र मान लेने की बात मुझे बिल्कुल भी हजम नहीं हुई। अजीब सा विरोधाभास है। जो भी धर्म यह बात कहता है की स्त्री अपवित्र है या फिर ईर के समक्ष वह पुरु ष से कहीं भी कम है, वह सच्चा धर्म नहीं हो सकता। साभार :- सहारा हिंदी पेपर , आधी दुनिया | ||
Sunday 28 August 2011
अपवित्र स्त्री जीवन
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