Saturday, 6 August 2011

कम होती बच्चियां. .मधु पूर्णिमा किश्वर


                                                                                                                                
                                                   कम होती बच्चियां 

                                                                                         


लगातार गिरता बाल लिंग अनुपात, खासकर छह साल की उम्र में प्रति 1,000 बालकों की तुलना में गिरती बालिकाओं की संख्या, इसका सुबूत है कि हमारे देश में गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने की दुष्प्रवृत्ति को रोकने से संबंधितकानून कितना लचर है। छह साल तक के आयु वर्ग में बालिकाओं का घटता अनुपात दरअसल कन्या भ्रूणहत्या का नतीजा है, जो गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच का परिणाम है। देश के दो अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों, पंजाब और हरियाणा, में लिंगानुपात सबसे खराब है। इससे यह पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी के नजदीक भी गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच के खिलाफ कानून व्यावहारिक तौर पर कितना लचर है।

वर्ष 1961 में छह वर्ष तक के आयु वर्ग में प्रति 1,000 बालकों पर 978 बालिकाएं थीं। वर्ष 2001 तक आते-आते प्रति हजार बच्चों पर बच्चियों की संख्या घटकर 727 रह गई थी। 2011 की ताजा जनगणना में यह अनुपात और कम होकर 914 रह गया है। हालांकि कुल मिलाकर स्त्री-पुरुष अनुपात में ऐसी कमी नहीं आई है। वर्ष 1961 में प्रति 1,000 पुरुष पर 941 महिलाएं थीं, जबकि 2011 की जनगणना में प्रति हजार पुरुष पर 940 महिलाएं हैं। 1980 तक छह वर्ष के आयु वर्ग में भी प्रति हजार बालक पर बालिकाओं की संख्या आज की तुलना में कहीं अधिक थी। इसलिए जनसंख्या में बालिकाओं का घटता अनुपात चिंताजनक है।

इन विरोधाभासी प्रवृत्तियों की एक वजह शायद यह है कि गर्भस्थ शिशु की लिंग जांच के बाद भ्रूणहत्या कर परिवार जहां अवांछित बच्चियों से छुटकारा पा लेते हैं, वहीं वे ही बच्चियां जिंदा रहती हैं, जिन मां-बापों को बेटियों की चाह होती है; ऐसे में इन बच्चियों की बेहतर देखभाल होती है। चूंकि पुरुषों की तुलना में स्त्रियां अधिक मेहनती और लचीली होती हैं, इसलिए अगर पोषण और स्वास्थ्य के मोरचे पर उनसे भेदभाव न हो, तो अधिक उम्र तक जीती हैं।

2001 से 2011 के बीच बुजुर्गों के लिंगानुपात में आई मामूली गिरावट आई है, तो उसकी वजह शायद यह है कि अपने यहां मध्य आयु के पुरुषों की मृत्यु दर अधिक है। उदाहरण के लिए, मध्य आयु वर्ग में हार्ट अटैक से मरने वाले पुरुषों की संख्या स्त्रियों की तुलना में कहीं अधिक है। भारतीय महिलाओं की तुलना में भारतीय पुरुष मोटापे से जुड़ी बीमारी, मद्यपान, धूम्रपान और ड्रग्स जैसी रहन-सहन से संबंधित आदतों के शिकार ज्यादा होते हैं।

रहन-सहन से जुड़ी बुरी आदतों को दूर करना आसान है, लेकिन छह वर्ष तक के आयु वर्ग में बालिकाओं की संख्या में आई गिरावट जिस सामाजिक विकृति का नतीजा है, उसका कोई आसान समाधान नहीं है। अगर सरकारी अधिकारियों, खासकर आईएएस अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और सांसदों, विधायकों, पंचायत सदस्यों और पार्षदों के परिवारों की अलग जनगणना हो, तो बेहद दिलचस्प नतीजे आएंगे। इनका लिंगानुपात राष्ट्रीय अनुपात से कम ही होगा। अगर समृद्ध तबकों में कन्या भ्रूणहत्या रोकने के लिए सरकार सख्त कानून लागू करे, तो संभवतः बेटे की चाह रखने वाली रुग्णमानसिकता पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
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