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“Jagran Junction Forum” के साभार से ,
भारत में महिलाओं की स्थिति में गत कुछ अरसे से बदलाव आया है. आधुनिक उदारीकृत अर्थव्यवस्था व बदली सामाजिक स्थितियों ने निश्चित रूप से महिलाओं को सशक्त होने का शानदार अवसर मुहैया कराया है. वे अब केवल गृहणी या घरेलू कामों के दायरे में सीमित नहीं हैं बल्कि व्यापार-उद्योग जगत, राजनीति व समाज में अपनी मुखर उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. समाज के ताने-बाने में उनकी स्थिति अब अबला से सबला की ओर रूपांतरित हो रही है और वे अब निर्णय में बराबर की भागीदारी निभा रही हैं.
महिलाओं के राजनीतिक, आर्थिक सशक्तीकरण ने उनके सामाजिक सशक्तीकरण में खासा योगदान दिया है. भारतीय संविधान की अपेक्षाओं के अनुरूप महिलाएं मुख्यधारा में मौजूद हैं और देश को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए कृतसंकल्पित भी हैं.
किंतु समाजवेत्ताओं और राजनीतिक दर्शन के अध्येताओं की राय, महिला सशक्तीकरण की दिशा और दशा को लेकर, नकारात्मक ज्यादा है और सकारात्मक कम. उनका मानना है कि भारत में महिला सशक्तीकरण दिशाविहीन है. वे कहते हैं, “महिलाओं की बेहतरी के लिए सरकारी प्रयासों की स्थिति संतोषजनक नहीं है और विकास का वास्तविक लाभ केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित है. गैर-सरकारी संगठनों समेत नारी हित में संलग्न सभी संस्थाओं के अपने निहित स्वार्थ महिला सशक्तीकरण की राह को भटकाकर भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और यही कारण है कि महिलाएं विकास और उन्नति के सही अर्थ को समझने की बजाय उसमें उलझी हुई ज्यादा प्रतीत हो रही है.”
समाज शास्त्रियों और अन्य जानकारों ने इस ओर ध्यान दिलाते हुए चिंता व्यक्त की है और कहा है कि वर्तमान में महिला सशक्तीकरण का मामला केवल आर्थिक सशक्तीकरण और राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति तक सीमित रह गया है जबकि इसका क्षेत्र कहीं अधिक व्यापक और सुचिंतित होना चाहिए था.
भारत में महिला सशक्तीकरण की खोखली वाहवाही के बीच स्त्री हितचिंतकों के नकारात्मक विचार बहस की बड़ी गुंजाइश को जन्म देते हैं. ऐसे में हमारे सामने कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनका उत्तर तलाशा जाना समय की मांग है, यथा:
1. भारत में महिला सशक्तीकरण की वर्तमान दिशा और दशा कैसी है?
2. क्या भारत में महिला सशक्तीकरण के नाम पर दिखावा ज्यादा है?
3. क्या महिलाओं के विकास और सशक्तीकरण के नाम पर उसके शोषण की नई पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है?
4. क्या महिलाओं के आर्थिक-राजनीतिक सशक्तीकरण के दावों के बीच महिलाओं के पूर्ण सशक्तीकरण की जमीन तैयार हो सकेगी?
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