Saturday, 27 August 2011

बुर्के में दुख



युवतियों की पीठ, वह भी नग्न! और उस पर बने टैटू। लो जी हो गया संस्कृति का नाश। हो गई पाश्चात्य संस्कृति की नकल।

इस खुलेपन को देख महिलाओं को बुर्के में कैद रखने वाले ब्लॉगजगत के कुछ संदेशवाहकों को भारतीय संस्कृति याद आ गई। अन्य मामलों में भारतीय संस्कृति कहां चली जाती है, पता नहीं। भारतीय संस्कृति को याद ही कर लिया है तो इसकी एक झलक दिखला दूं, तुम्हें भी पता चले भारत क्या था, ज्यादा पीछे क्यों जाए। बस अपनी परदादियों के जमाने की ही बात कर लेते हैं।

 उस समय रूढ़िवादी कहलाते राजस्थान के छोटे से कस्बे तक में ‘सभ्य-संस्कारी’ हिन्दू महिलाएं ‘ब्लाउज’
(यह अंग्रेजों की देन है) नहीं, ‘कांचली’ नामक वस्त्र पहनती थीं, जिसमें उनकी पूरी पीठ खुली रहती थी। यह हमारी संस्कृति थी। उस समय की कोई तस्वीर तो नहीं है, मगर इस कलाकृति में उस वस्त्र को देख सकते हैं। रही बात टैटू की तो पूरे शरीर में ‘गोदने’ गुदवाने वाली ‘फैशनेबल’ महिलाएं तो मैंने भी देखी है, जो अब उम्र हो जाने से दिवंगत हो गई हैं। माने हमारे यहां कई पीढ़ियों से टैटू का प्रचलन रहा है। ऐसे में आधुनिक युवतियां भी टैटू खुदवा कर कौन-सी संस्कृति का नाश कर रही हैं?

 अत: संस्कृति की आड़ में महिलाओं के प्रति अपने दूषित विचार व्यक्त करने से पहले भारतीय संस्कृति का पूरा अध्ययन कर लें, फिर अपनी ऊर्जा अपने समाज में व्याप्त रूढ़ियों को दूर करने में लगाएं, जहां आज भी महिलाएं बुर्के में सिसक रही हैं।      

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