Wednesday 14 August 2013

बढ़े आए देश की आज़ादी पर सोचने वाले ...



च्छा लगता है बच्चों को आज के दिन खुश देख कर , तिरंगा खरीदने की जिद्द करते हुए। उन के लिए यह एक उत्सव है। होना भी चाहिए ..वो सब !! 
 मतलब बोले तो सभी बच्चे  !! हर प्रकार के  फ़िक्र से परे है !! मतलब सब  फ़िक्र से परे  ..उन्हे क्या पता बी जे पी - कांग्रेश का  चुनावी एजेंडा क्या है ? जिंदल क्यूँ boxit निकालने के लिए पहाड़ ले रहा है , क्यूँ बड़े बाँध के लिए लोग बिस्थापित किए जा रहें हैं ? मनरेगा का रुपिया जो की हमारे टैक्स का रुपिया है कहाँ जा रहा है ? मंदिर जरूरी है या अस्पताल , जिन्दा रहना जरूरी है या लड़ना। 

और हम सब भी गज़ब हैं  ..बढ़े होते संतान को घर वाले क्या  समझाते है - पढो की जल्दी नौकरी  मिल जाए , क्या करो की सब काबू मे रहे  .पर  घर/ समाज / देश की राजनीति पर कोई समझ बनाने के लिए कोई प्रयास  नहीं ! 
क्या बात है !! और फ़िर सब तथाकथित चिन्तक लोगों को लगता है की घर/देश/समाज मे  सब गड़बड़ हो रहा है ।  

बढ़े आए देश की आज़ादी पर सोचने वाले !

भारत माँ की चिंता , भारत माँ के इज्जत की चिंता , उस के चारो ओर  के दीवार / सीमा के सुरक्षा की चिंता।  इसी चिंता के कारण देश का रक्षा बजट बढ़ता जा रहा है और शिक्षा , स्वस्थ्य पर सब्सिडी काम होती जा रही है।  

सम से माँ रूपी देश की चिंता करते - करते हम अब घर में मौजूद  लड़की - औरत  के शरीर की चिंता  करने लगे हैं  और इनको भी दीवाल और सीमा मे बाँध देने के नियम और परम्परा बना दिए हैं।  कोई फर्क नहीं तथाकथित भारत माँ ! और घर की माँ-औरत -लड़की मे।   यह की इसी सीमा के अंदर वो कहने को सुरक्षित हैं क्यों कि महिलाओं का शरीर इसी सीमा के अंदर भेदभाव झेलता है , हिंसा सहता  है , गाली सुनता है 
 सीमा से बाहर तो सीता जेसा हाल  !! और सुरक्षा का ठेका लक्ष्मन-आदमी- मर्द-भाई-हथियार से  ;-) ओह ओह !! वाह वाह !! 
मानसिकता बनाने के लिए एक से एक मुहाबरे / कहावत - औरत खुली तिजोरी है , लड़की घर की इज्जत है , लड़की लक्ष्मी है , औरतों की अकल  घुटने में है , औरतों के नाक न हो तो गन्दा खा लें। ढोल गवाँर छुद्र पशु नारी  , सब तारण के अधिकारी।  

 सब का अर्थ यह निकलता है कि लड़किओं और औरतों को घर के अंदर बंद कर के रखो , तिजोरी की तरह। घर की तिजोरी को कोई भी  खुला तो नहीं छोरता।   धन तो घर के अन्दर हीं  सुरक्षित हैं।  धन रूपी शरीर को  संभाल कर रखो।  
 तथाकथित तिजोरी पर तो इतना ध्यान और चोर-लुटेरे पर कोई चर्चा नहीं ! मतलब इज्जत लेने वाले पुरुषों पर।  

सही मायने में पूरा चक्कर है नियंत्रण का देश के बहाने शरीर - मन - सपने - सोंच - योनिकता -व्यवहार -  निर्णय और बाहर घूमने - फिरने  पर  .

अब जरा सोंचिए ना   माँ - बहन की गाली दो - पत्थर से बनी  देवी की पूजा करो , मन्दिर - मस्जिद- गुरुद्वारा - चर्च और कही भी चप्पल खोल कर जाओ और  - घर - पडोस की महिला पर किसी बहाने लात- जूता - चप्पल चलाओ। 
और तो और !!  अपने ना चलाओ तो जो चला रहा है उस को चलाने से ना रोको ..और ना रोकने के कई बहाने ( मेरी बीबी नहीं , मेरे घर की नहीं है , उस की है जो उस को मन करे वो उस के साथ करे ..हम को क्या ? )
 किसी धार्मिक जगह पर चप्पल पहन कर चले जाए तो !! जो आप को जानते नहीं वो भी आप की कायदे से क्लास ले लेंगे।  तब धर्म , आस्था के नाम पर अनजाने लोग भी एक हो जायगे .  
निर्जीव वस्तु के लिए श्रद्धा चरम पर लेकिन सजीव शरीर के सम्मान के लिए , उनके हिंसा और भेदभाव मुक्त जीवन के लिए कोई एक नहीं होता।  सब बट जाते हैं।  

दिमाग - विचार - व्यवहार - कर्म से गुलाम और आज़ादी उत्सव देश के नाम वाह !! 
देश आज़ाद  कैसे  रहेगा ? इस के लिए एक हज़ार उपाय और प्रयाश पर मानव शरीर कैसे  आज़ाद रहेगा उसमे भी महिलाओं का शरीर तो सब आप की बोलती बंद कर देंगे लोग समझाने पहुँच जाएगें और कहेंगे कि शी शी !! क्या बोल रहे हैं ?? ..धीरे बोलिए क्या बोल रहे है ..कोई सुन लेगा .. घर- परिवार - राष्ट्र -धर्म तो उस की गुलामी की सोच रहा है .और आप इन की आज़ादी की बात कह रहे हैं। भाई  देश आज़ाद रहना चहिए पर महिलाओं का शरीर, मन  गुलाम।   

हम  कार, मोटर साइकिल पर तिरंगा का स्टीकर चिपकाते हुए खुश हो लेते हैं , पर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से निकलते हुए कई सालों से ..हाथ मे कागज से बना  छोटा तिरंगा का स्टीकर लिए पिन के साथ ..वो औरत .... जो सब के सीने पर कपडे मे तिरंगा लगा कर रुपिया लेना चाहती है ..और हम मे  से कई उस को मना करते रहते हैं ... यही है सच उस तिरंगे का ..तिरंगे के मायने का !! और एक विशेष दिन उस की इतनी कद्र ..ओह !! 
क्या सड़क , दुकान , फूटपाथ , राजनितिक पार्टियाँ ..सब का मुद्दा एक  " आज़ादी "  ," तिरंगा " ... " देश की सुरक्षा " , भारत माँ की चिंता उस के चारो और के दीवार / सीमा की चिंता ...

चक्कर है नियंत्रण का ..देश के बहाने शरीर - मन - सपने - सोंच पर / 

और फिर कई सवाल से चतुराई से बचने की सफल कोशिस .... 
घर मे एक शरीर को तो ..... क्या पहनना है , क्या पढना है , कहाँ और कब जाना है ,  किसके साथ जाना है, कहाँ  रहना है , किस से सम्बन्ध रखना है - बनाना है इस की फ़िक्र तो है नहीं ..हम इस आज़ादी पर  कोई सवाल नहीं सुनना चाहते ..बढ़े आए देश की आज़ादी पर सोचने वाले ...
इंडियन नेशन की आज़ादी का उत्सव वाह !! और नेशन की जनता की आज़ादी , राज्यों की आज़ादी !!    उस पर हमारा नेशन हम को बात नहीं करने देता ..और साथी किया तो देश द्रोह ...तथाकथित नेशन के पक्ष मे कहा - सुना - मान लिया तब तो देश भक्त पर !! सवाल उठा दिया  ..ओह ओह .. तब तो देश द्रोही  नहीं तो विकाश बीरोधी ....
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दीप जिस का महल्लात  (महल का बहुवचन) ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को लेकर चले
वो जो साये में हर मसलहत ( समयोचितता, expediency ) के पले

ऐसे दस्तूर( संविधान)  को, सुबह-ए-बेनूर को
मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता

मैं भी खाइफ़ ( खोफज़दा, भयभीत )  नहीं तख्ता-ए-दार ( फाँसी का तख़्ता )  से
मैं भी मंसूर ( एक मशहूर सूफी संत जिन्हें बादशाह ने उन के विधर्मिक व्यवहार के कारण फांसी पर चढ़ा दिया था )  हूँ कह दो अग़यार ( ग़ैर का बहुवचन ) से
क्यूँ डराते हो ज़िन्दां  ( क़ैदख़ाना ) की दीवार से

ज़ुल्म की बात को, जहल ( जहालत ) की रात को
मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता

फूल शाखों पे खिलने लगे, तुम कहो
जाम रिन्दों को मिलने लगे, तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे, तुम कहो

इस खुले झूट को, ज़हन की लूट को
मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता

तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ ( जादू )
चारागर मैं तुम्हें किस तरह से कहूँ

तुम नहीं चारागर ( चिकित्सक, काम बनाने वाला, (काम या हालत वगैरा को) दुरुस्त करने वाला, बिगड़ा काम बनाने वाला, मदद करने वाला ) , कोई माने, मगर
मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता

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आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख ।
अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख ।
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख ।
ये धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख ।
राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई, 
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।
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भागवत के भांड नहीं 
बेख़ौफ़ आज़ादी अभी चाहिए 
मौलाना का फरमान नहीं 
बेख़ौफ़ आज़ादी अभी चाहिए 
नेता का भाषण नहीं 
बेख़ौफ़ आज़ादी अभी चाहिए 
फौज पुलिस का जुल्म नहीं 
बेख़ौफ़ आज़ादी अभी चाहिए 

राजपथ तुम्हारा होगा 
जनपथ हमारा है 
ये 2013 है 
एक नया सवेरा है 

जम्हूरियत का एक ही नाम 
बेख़ौफ़ औरत 
आज़ाद इंसान