Saturday 27 August 2011

एक बेवकूफ़ औरत का ख़त..(एक आदमी के लिए)


एक बेवकूफ़ औरत का ख़त

(एक आदमी के लिए)


निज़ार क़ब्बानी की कविताओं की सीरीज़ एक और कविता -

1)

प्रिय स्वामी,
यह ख़त एक बेवकूफ़ औरत लिख रही है
क्या मुझ से पहले किसी बेवकूफ़ औरत ने आप को ख़त लिखा है?
मेरा नाम? अलग धरिये नामों को
रानिया, या ज़ैनब
या हिन्द या हाइफ़ा
मेरे स्वामी, नाम होते हैं सबसे अहमकाना चीज़ें
जिन्हें हम अपने साथ लिए चलती हैं 


(2)

मेरे स्वामी, 
अपने ख़्यालात आपको बताने में मुझे ख़ौफ़ लग रहा है
मैं ख़ौफ़ज़दा हूं - अगर मैंने आपको बता दिए -
तो दहक उठेगा स्वर्ग
अपने पूरब के लिए मेरे स्वामी, 
नीले ख़तों को ज़ब्त कर लीजिए
औरतों के ख़ज़ानों से सपनों को ज़ब्त कर लीजिए
औरतों की संवेदनाओं का दमन कीजिए
इस के वास्ते चाकुओं की दरकार होती है ...
और बड़े छुरों की ...
औरतों से बात करने को
इसके वास्ते वसन्त और जुनूनों
और काली चुन्नटों का वध करना होता है
और मेरे स्वामी, आपका पूरब
पूरब के वास्ते निर्माण करता है एक नाज़ुक ताज का
औरतों की खोपड़ियों से.

(3)

मेरी बुराई मत कीजिए स्वामी
कि मेरा हस्तलेख ख़राब है
क्योंकि मैं लिख रही हूं और मेरे दरवाज़े के पीछे तलवार है
और कमरे से परे हवा की आवाज़ और कुत्तों का भौंकना
मेरे स्वामी!
अन्तर अल अबिस मेरे दरवाज़े के पीछे है!
वह मेरा कत्ल कर देगा
अगर उसने देख लिया मेरा ख़त
अगर मैं अपनी यातना के बाबत बोलूंगी
तो वह मेरा सर कलम कर देगा
अगर उसने मेरी पोशाक का झीनापन देख लिया
तो वह मेरा सर कलम कर देगा
और आपके पूरब के वास्ते, मेरे स्वामी
औरतों को घेरा जाता है भालों से
और आपका पूरब, मेरे प्रिय स्वामी
पुरुषों को चुनता है पैग़म्बरों की तरह 
और धूल में दफ़ना देता है औरतों को.

(4)

खीझिए मत!
मेरे प्रिय स्वामी, इन पंक्तियों से
खीझिए मत!
अगर मैंने चकनाचूर कर दीं सदियों से बाधित शिकायतें
अगर मैंने अपनी चेतना पर ठुकी मोहर उखाड़ ली
अगर मैं भाग गई ...
महलों के हरम के गुम्बदों से
अगर मैंने बग़ावत कर दी, अपनी मौत के खिलाफ़
अपनी कब्र, अपनी जड़ों के ख़िलाफ़ ...
और विशाल कसाईबाड़े के ख़िलाफ़ ...

खीझिए मत! मेरे प्रिय स्वामी,
अगर मैंने आपके सामने खोल कर रख दीं अपनी भावनाएं
क्योंकि पूरब का पुरुष
कविता या भावनाओं से मतलब नहीं रखता
पूरब का पुरुष - मेरी गुस्ताख़ी माफ़ कीजिएगा - औरतों को नहीं समझता
सिवाय चादरों के ऊपर.

(5)

मैं माफ़ी चाहती हूं मेरे स्वामी - अगर मैंने पुरुषों की सल्तनत पर गुस्ताख़ हमला बोला हो
क्योंकि महान साहित्य निस्संदेह
पुरुषों का साहित्य होता है
और प्रेम हमेशा से रहा है
पुरुषों का हिस्सा
और सैक्स हमेशा से
पुरुषों को बेची गई दवा रहा हैI
हमारे मुल्कों में औरतों की आज़ादी, एक सठियाई हुई परीकथा
क्योंकि कोई आज़ादी नहीं है
सिवा, पुरुषों की आज़ादी के ...

मेरे स्वामी
बता दीजिए आप मुझे क्या कहना चाहते हैं. अब मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता -
खोखली ... बेवकूफ़ ... पागल ... साधारण
अब मुझे इस सबसे कोई वास्ता नहीं
क्योंकि जो भी स्त्री लिखती है अपनी चिन्ताओं के बारे में
पुरुषों के तर्क के मुताबिक
बेवकूफ़ औरत होती है
आउर क्या मैंने आपको शुरू में ही नहीं बता दिया था
कि मैं एक बेवकूफ़ औरत हूं?
....................................................................................
" कबाड़खाना " के  सोजन्य  से  

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