Thursday, 29 September 2011

सहती है क्यों औरत?


तुम पूछते हो
सहती है क्यों औरत?
जवाब क्यों नहीं देती? 
‘‘पिता-पति-पुत्र ही हैं स्त्री के रक्षक
बाप-शौहर-बेटा है निगहबान इसका
खानदान का नाम चलाता है बेटा
बोझ की खान है बेटियाँ
मर्द कमाता है, खिलाता है, पैसा लाता है
लाठी है बुढ़ापे की
इसीलिए दर्जा भी ऊँचा है उसका

.. और फिर औरत
भोग की वस्तु है
कहाँ मर्द- कहाँ औरत’’
तुमने रचे शास्त्र, गढ़े नियम, 
बनाई मर्यादाओं की घेराबंदी 
जवाब तुम्हारे ही पास है
कैसा क्रूर मजक 
फिर भी करते हो सवाल 
सहती है क्यों औरत 

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