Tuesday 26 March 2013

16 की सच्चाई

कैबिनेट द्वारा लाए गए बलात्कार निरोधक कानून को लेकर पिछले कुछ दिनों से कई तरह की भ्रांतियां बनी हुई हैं। हालांकि कुछ संशोधनों के साथ अब राजनीतिक दलों में मसौदे पर सैद्धांतिक सहमति बनी है। असली भ्रम सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र, बलात्कार कानून के अलावा इससे जुड़ी सजा व दुष्परिणाम को लेकर है

यौन संबंध की सहमति की उम्र 18 साल से घटाकर सरकार द्वारा अचानक 16 साल नहीं की गयी है। हालांकि अनेक राजनीतिक दलों के विरोध को देखते हुए सरकार इस मामले पर पुनर्विचार कर रही है और संकेत हैं कि यह आयु 18 वर्ष ही रखी जाएगी। मालूम हो कि भारत में सहमति की उम्र 1983 से लेकर अभी कुछ महीने पहले तक 16 वर्ष ही थी। इस मामले में सिर्फ चार महीने पहले आवाज बुलंद हुई। इसे 18 वर्ष किए जाने को लेकर मामला गर्माया और चाइल्ड सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट (पीओसीएसओ) सामने आया। यह मामला अध्यादेश के आने के एक महीने पहले का है। सहमति की उम्र 16 वर्ष किए जाने का अर्थ यह नहीं है कि किशोरों या टीन्स को सेक्स करने का लाइसेंस मिल गया या उसे बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है। बहस इस पर नहीं है कि टीनएज सेक्स अच्छा है या खराब, बल्कि बहस का केंद्र यह है कि टीन्स के बीच सहमति से किया गया सेक्स बलात्कार के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है या नहीं। क्योंकि आपराधिक कानून में नैतिक या सामाजिक संहिता जैसा कुछ भी नहीं है। यदि सहमति की उम्र 18 बढ़ायी जाती है तो इसका अर्थ यह हुआ कि 16 से 18 वर्ष के बीच के लड़के को बलात्कारी या यौन दोषी के तौर पर सजा दी जा सकती है जबकि उसके समान उम्र की उसकी गर्लफ्रेंड साफ तौर पर कह रही होगी कि उसकी मर्जी से उसके दोस्त ने यह सबकुछ किया। जब शादी की उम्र 18 साल है तो सहमति से सेक्स करने की उम्र में अंतर क्यों है? इस मामले में पहली बात यह कि यदि कोई नाबालिग लड़का किसी नाबालिग लड़की से शादी करता है तो बाल विवाह कानून के तहत उस लड़के को सजा नहीं मिलेगी। लेकिन जब नाबालिग लड़का अपने समान उम्र की नाबालिग लड़की को उसकी मर्जी से बांहों में लेता है, चूमता है या सेक्स करता है तो उसे यौन अपराधी या बलात्कारी के तौर पर सजा हो सकती है। बाल विवाह के खिलाफ कानून माता-पिता को नाबालिग बच्चों के जीवन के फैसले लेने से रोकता है। वह युगल को इस बात का अधिकार भी देता है कि वे बालिग होंगे तो वे शादी बरकरार रखना चाहते हैं या नहीं, यह उन पर निर्भर है। यह बात सत्य है कि 16 से 18 के बीच की अवस्था में चिकित्सा विज्ञान भी गर्भधारण को उचित नहीं मानता। उन्हें सेक्स करने से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन उस उम्र में एक-दूसरे के प्रति प्राकृतिक तौर पर आकर्षित होना हकीकत है। ऐसे में वयस्कों को यह समझाने की जरूरत है कि वे अपने शरीर को समझें, उन्हें सम्मान दें और आकर्षण में न बहें और प्रेम के प्रति जिम्मेदार बनें। ऐसे में यौन आकर्षण उन्हें अपराधी तक बना सकता है और निदरेष वयस्क बलात्कारी सिर्फ इसलिए बन जाता है क्योंकि उसने अपने हमउम्र की लड़की के साथ उसकी सहमति से सेक्स संबंध बनाए हैं। जिस लड़के ने आपसी सहमति से संबंध बनाए थे, उसे गलत तरीके से बलात्कारी के तौर पर पेश किया जाएगा। इसका अंजाम यह होगा कि वह महिलाओं से डरेगा या फिर घृणा करेगा और वह कामुकता और महिलाओं के प्रति विकृत घृणाओं से भरा रहेगा। इसलिए उसके महिलाओं के प्रति हिंसक होने की संभावनाएं अधिक होंगी। और तो और, हम उस दुनिया में रहते हैं जहां वयस्कों के जीवन और विकल्पों को लेकर मोरल पॉलिसिंग काफी खतरनाक है। चाइल्ड सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट के तहत तीसरी पार्टी (माता-पिता, मोरल पॉलिसिंग आउटफिट्स, खाप या और कोई) नाबालिग लड़के के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा सकता है और न्यायालय में न्यायाधीश लड़के की इस दलील पर कि लड़की की सहमति से उसने ऐसा किया, की अनदेखी कर लड़के को दोषी करार दे सकते हैं। इसलिए कई न्यायाधीशों ने भी मांग की है कि सहमति की उम्र 16 रखी जाए और इसे 18 न बढ़ाई जाए क्योंकि वे नहीं चाहते कि किसी वयस्क बालक को जबर्दस्ती दोषी ठहराया जाए जबकि उसने सहमति से यौन संबंध बनाए। टाटा स्काई के एक विज्ञापन को लेकर जरा सोचें, जिसमें एक भाई अपनी बहन को किसी लड़के के साथ डिनर पर जाने की अनुमति नहीं देता। यदि सहमति की उम्र 18 वर्ष सचमुच बढ़ा दी जाती है तो नाबालिगों के बीच किसी भी तरह का यौन संपर्क स्वत: बलात्कार की श्रेणी में आ जाएगा। ऐसे में जो भाई अपनी बहन की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना चाहता है, वह उसका प्रयोग करेगा और किसी भी लड़के/पुरुष सहपाठी/बहन के दोस्त को दोषी ठहरा देगा। इसलिए जेंडर को लेकर पक्षपातपूर्ण धारणा रखने वाली पुलिस पार्क में एक साथ बैठे जोड़ों को भी परेशान करने से नहीं चूकेगी।

या झूठी शिकायतें यदि महिला किसी पुरुष के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज कराती हैं तो इसका कानूनी विकल्प क्या है? कानूनी विकल्प आईपीसी सेक्शन-182 और 211 में पहले से मौजूद है। इसके तहत झूठी शिकायत करने पर सजा मौजूद है क्योंकि किसी भी कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। ऐसे में सवाल है, बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले में झूठी शिकायतों को लेकर क्यों विशेष प्रावधान किया जाए? इस तरह के प्रावधान महिलाओं को झूठी शिकायतें दर्ज करने से रोकते हैं। याद रखें कि यह विधेयक सिर्फ महिलाओं के संघर्ष का परिणाम है। यह पुरुष-विरोधी नहीं है। यह विधेयक यौन हिंसा संबंधी मामले में पुरुषों के साथ- साथ सभी लोगों की रक्षा के लिए है। यही कारण है कि इसमें पीड़ित को जेंडर मामले में तटस्थ रखा गया है। महिलाओं का संघर्ष ही सरकार को बदलाव लाने के लिए सहमत करता है कि अध्यादेश की गलतियों को सुधारा जाए। बलात्कार कानून में दोषी को ‘विशिष्ट जेंडर’ के तहत रखा गया है (क्योंकि महिला किसी पुरुष का बलात्कार नहीं कर सकती), सहमति की उम्र 16 साल बरकरार रखा गया है और विधेयक में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि बलात्कार के चार्जशीट वाले लोकसेवकों को अभी तक जो संरक्षण प्राप्त था, वह नहीं मिलेगा। ताकझांक, पीछा करना, एसिड हमले और नंगा करने जैसे मामले यौन अपराध के दायरे में आएंगे। ऐसे में, जस्टिस वर्मा की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करने को लेकर हमें दूसरी लड़ाई जारी रखनी होगी। बहरहाल, महिलाओं के आंदोलन को लेकर यह विधेयक काफी बड़ी उपलब्धि है।

ताकझांक ताकझांक का अर्थ सिर्फ घूरना नहीं है। ‘फे सबुक’ पर किसी लड़की की तस्वीर अपलोड करना ताकझांक नहीं है। यदि कोई पुरुष अपनी गर्ल फ्रेंड का सेक्स एमएमएस बनाता है या न्यूड फो टो बनाकर उसे सकरुलेट करता है तो इसे ताकझांक कहा जाएगा क्योंकि यह उसकी निजता का हनन है। यदि कोई महिला कपड़े की दुकान के चेंजिंग रूम में कपड़े बदल रही है और वहां गुप्त छेद या गुप्त कैमरे की मदद से उस पर नजर रखी जा रही है तो यह ताकझांक की श्रेणी में आएगा। दिल्ली गैंगरेप के मुख्य आरोपी राम सिंह पर भी ताकझांक करने का आरोप लगा था। उसकी महिला पड़ोसी ने समाचार एजेंसी ‘रॉयटर’ को बताया था कि जब कभी-कभी हम कपड़े बदल रहे होते या नहा रहे होते थे तो वह हमारे घर की झलक ले रहा होता था। विरोध करने पर वह काफी कठोर हो जाता था और कहता था कि उसे कहीं भी खड़ा रहने का अधिकार है। ताकझांक करना मूल रूप से, किसी की निजता को छिप कर जासूसी करने का मामला है। यह कानून पुरुषों की रक्षा भी करता है।

पीछा करना फिल्म "डर" के गाने ˜तू हां कर या ना कर, तू है मेरी सनम  को याद कर लें। यह है ˜स्टाकिंग" यानी पीछा करना। लगातार किसी का पीछा करना, धमकीभरे मेल/पत्र भेजना कि तुम पर एसिड फेंक दूंगा या बलात्कार/र्मडर कर दूंगा, इसी श्रेणी में आते हैं। ज्यादातर महिलाएं इसी दहशत में जीती हैं और इसे लेकर कोई उपाय अभी तक नहीं किया गया है। इस मामले में लगातार सड़कों पर आंदोलन हो रहे हैं कि सिर्फ बलात्कारी को ही सजा न मिले बल्कि बलात्कार, र्मडर और एसिड हमलों जैसी घटनाओं पर अंकुश लगे। याद करें- प्रियदर्शिनी मट्टू कांड को। उसने पुलिस के पास कई बार संतोष सिंह के खिलाफ पीछा करने का मामला दर्ज कराया था। लेकिन कोई कानून नहीं था जिसके बिना पर उसे पीछा करने के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता तो संतोष सिंह न तो उसका बलात्कार ही कर पाता और न ही उसकी हत्या। एसिड हमलों के साथ-साथ बलात्कार और र्मडर (धौलाकुआं में राधिका तंवर की हत्या की तरह) मामले अपराधियों द्वारा काफी दिनों तक पीछा करने के बाद ही हुए हैं। पीछा करने के मामले को गैरजमानती क्यों बनाया जाना चाहिए, यह अहम सवाल है क्योंकि पीछा करने वाला, जो एसिड फेंकना चाहता है या गोली मारना चाहता है, वह आगे कदम बढ़ा सकता है और यदि महिला मामला दर्ज करती है तो वह दोगुने गुस्से से ऐसा करेगा। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि धमकियों को अंजाम देने से पहले उसे गिरफ्तार किया जाए। र्मडर और बलात्कार की तु लना में पीछा करने वाले को दोषी साबित करना आसान है। पीछा करने वालों को लेकर गवाही या फिर दस्तावेज के तौर पर सबूत (धमकी भरा पत्र, फोन कॉल की रिकॉर्डिग वगैरह) उपलब्ध होते हैं। इनके आधार पर अपराध साबित किया जा सकता है औ र सजा दी जा सकती है। पीछा करने के मामले में महिलाओं के साथ- साथ यह अधिकार पुरुषों को भी मुहैया कराया गया है।

साभार :- कविता कृष्णन

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