Monday 12 December 2011

चरखवा चालू रहै !


लोक अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम अपने आसपास और अपनी भाषा - शैली में ही खोजता है.ऐसा नहीं है कि देश - दुनिया के मामलात और मसले उसे प्रभावित नहीं करते लेकिन जब उन पर प्रतिक्रिया और प्रसंगानुकूल प्रकटीकरण की बात आती है तब वह सबसे पहले अपने तरीके से अपनी बात कहने की कोशिश करता हैं, यही उसकी खूबी ,खासियत व खरापन है. भारतीय स्वाधीनता के समर में जनजागरण के एक सशक्त औजार के रूप में लोकगीतों के वर्ण्य विषय कितने समकालिक, कितने सजग हो चले थे, यह 'चरखवा चालू रहै' गीत में बखूबी देखा जा सकता है. गौर करने की बात यह है इतना सब होते हुए भी न केवल इसकी सहजता बरकरार है बल्कि मौज, मस्ती और मारक व्यंगात्मकता जस की तस है. इतिहास के खाने में दर्ज इस गीत के रचयिता पता नहीं चल पाया है. वैसे भी लोक की सामूहिकता में यह संभव भी नहीं लगता है कि किसी एक व्यक्ति ने इसे इसे रचा होगा . यह एक सामूहिक - सामयिक इंप्रोवाइजेशन का प्रतिफल ही रहा होगा शायद. आज गांधी जयंती अवसर पर प्रस्तुत है गीत - 'चरखवा चालू रहै' आप इसे पढ़िए , आधुनिक भारत के इतिहास - चरित्रों से मुखतिब होइए और गांधी बाबा की बारात का हिस्सा बन जाइए ....
चरखवा चालू रहै !
गांधी बाबा दुलहा बने हैं
दुलहिन बनी सरकार
चरखवा चालू रहै !

वीर जवाहर बने सहबाला
अर्विन बने नेवतार
चरखवा चालू रहै !

वालंटियर सब बने बराती
जेलर बने वाजंदार
चरखवा चालू रहै !

दुलहा गांधी जेवन बैठे
देजै में मांगें स्वराज
चरखवा चालू रहै !

लार्ड विलिंगटन दौरत आए
जीजा , गौने में दीबो स्वराज
चरखवा चालू रहै !

( 'चरखवा चालू रहै' गीत नरेशचंद्र चतुर्वेदी द्वारा संपादित पुस्तक 'आजादी के तराने' से संकलित किया गया है और गांधी जी का स्केच इन पंक्तियों के लेखक की बिटिया हिमानी ने अपने स्कूल के वाल मैगजीन के लिए बनाया था, मुझे अच्छा लगा सो उसका फोटोग्राफ़ यहां चिपका दिया )

साभार :- कबाड़ख़ाना 

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