ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय | औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ||
Speak in words so sweet, that fill the heart with joy
Like a cool breeze in summer, for others and self to enjoy
कबीर का कहा मानते तो अपनी बोली से किसी को कस्ट नहीं होता। शब्दों के सामाजिक , जातीय विश्लेषण से उनके अर्थ और घातक हो गये हैं .
कुछ शब्द किस हद तक आप को तकलीफ़ पंहुचा सकते हैं यह उनसे पूछे जिसके लिए यह बोला जाता हैं। बाँझ , डायन , लुल्ला , लंगड़ा , अँधा , काली - कलुठी , विधवा , कुलटा । यह सभी शब्द " कलंक " की तरह होता हैं जिसका असर ताउम्र हैं। BBC हिंदी का यह लेख इस मायने में अतिमहत्वपूर्ण हैं।
जो व्यक्ति शारीरिक या मानसिक तौर पर विकलांग हैं उन्हें अपंग कहना सही है या अक्षम या निशक्त?
भारत सरकार ने 1995 में विकलांग जनों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए जब क़ानून बनाया तो उसे नाम दिया, ‘निशक्तजन अधिनियम 1995’.
पर समय के साथ विकलांग जनों ने इसपर आपत्ति जताई और अब नए क़ानून में वो ‘निशक्त’ नहीं ‘विकलांग जन’ कहलाना चाहते हैं.
पर आम बोलचाल की भाषा में विकलांग व्यक्तियों को उनकी विकलांगता से जुड़े कई अभद्र शब्दों से संबोधित किया जाता है, जबकि इनके बेहतर और सम्मानजनक विकल्प मौजूद हैं.
‘निशक्तजन अधिनियम 1995’ के तहत, केंद्र सरकार की तरफ़ से एक ‘मुख्य आयुक्त, निशक्त जन’ और राज्य सरकारों की तरफ़ से ‘आयुक्त, निशक्त जन’ की नियुक्ति की गई.
फिर भारत सरकार ने साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र के ‘कनवेनशन ऑन द राइट्स ऑफ़ परसन्स विद डिसएबिलिटीज़’ पर हस्ताक्षर किए और इसमें ‘परसन्स विद डिसएबिलिटीज़’ यानि ‘विकलांग जन’ संबोधन के इस्तेमाल पर सहमति बनी.
जिसके बाद अब सरकार ने इन पदों के नाम बदलकर ‘मुख्य आयुक्त, विकलांग जन’ और ‘आयुक्त, विकलांग जन’ कर दिए हैं.
कनवेनशन में शब्दावली पर सहमति इसलिए बनाई गई क्योंकि दुनिया के अलग-अलग देशों में विकलांगता से जोड़कर अभद्र और रूढ़ीवादी संबोधन इस्तेमाल किए जाते हैं.
भारत के मौजूदा सरकारी क़ानून में उन लोगों को तो विकलांग माना जाता है जिन्हें सुनने में तकलीफ़ हो पर उन्हें नहीं जो बोल नहीं सकते.
समय के साथ बेहतर हुई समझ के मुताबिक़ अब नए क़ानून में ना बोल पाने की विकलांगता को अलग श्रेणी देने की मांग की गई है.
सुनने और बोलने से जुड़ी विकलांगता को अब ‘मूक-बधिर’ कहकर संबोधित किया जाना सही माना जाता है.
‘अंधा’ की जगह ‘नेत्रहीन’ शब्द का इस्तेमाल अब प्रचलन में है. इसके बावजूद कई स्कूल जिन्हें सरकार या निजी स्तर पर लोग चला रहे हैं, अब भी ‘अंध विद्यालय’ नाम रखते हैं.
टांगों या बाज़ू से जुड़ी किसी भी विकलांगता वाले व्यक्ति को ‘शारीरिक रूप से विकलांग’ और दिमाग़ से जुड़ी किसी प्रकार की विकलांगता वाले इंसान को ‘मानसिक रूप से विकलांग’ कहा जाने लगा है.
आम बोलचाल में ‘कोढ़ी’ शब्द भी अपमानजनक है और इसकी जगह ‘कुष्ठ रोगी’ को अब सही माना जा रहा है.
नए क़ानून पर काम कर रही संसद की स्थाई समिति ने ‘अलग क्षमता वाले लोग’ या ‘ख़ास क्षमता वाले लोग’ जैसे संबोधन के इस्तेमाल की बात कही है.
पर विकलांग जन इसे सही नहीं मानते और कहते हैं कि ये अहसान जताने जैसा है. उनके मुताबिक़ ‘विकलांग जन’ सम्मानजनक भी है और उनकी शारीरिक स्थिति को स्पष्ट भी करता है.
भारत में 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक़ देश में ढाई करोड़ से ज़्यादा विकलांग जन हैं. इस जनगणना में देखने, सुनने, बोलने, चलने-फिरने, मानसिक बीमारी समेत आठ श्रेणियों की विकलांगता को शामिल किया गया है.
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