हाल ही में दिवंगत हुए जनकवि रमा शंकर यादव ‘विद्रोही’ को उनके कुछ प्रशंसकों ने अनूठे अंदाज में श्रद्धांजलि दी है.
विद्रोही जेएनयू में रहते थे और जेएनयू उनमें रहता था. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में जन्मे रमा शंकर यादव पढ़ाई के लिए दिल्ली के इस विश्वविद्यालय में आए तो फिर यहीं के होकर रह गए. यहीं उन्हें विद्रोही उपनाम मिला और यहीं से उनकी कविताएं निकलीं. साहित्यिक हलकों में अनजान लेकिन छात्रों और कविता प्रेमियों के बीच मशहूर इस फक्कड़ कवि का आठ दिसंबर को 58 साल की उम्र में निधन हो गया.
सवाल उठाने वाली परंपरा की जो धारा जेएनयू की पहचान रही है विद्रोही उसके जीवंत प्रतीक थे. जेनएनयू में हर साल आने वाले एक चौथाई नए छात्रों के लिए वे पुराने संघर्षों की जीती-जागती मिसाल रहे. उनका जाना भी इस परंपरा के मोर्चे पर ही हुआ. वे वैसे ही गए जैसे जनकवि जाते हैं. मुट्ठियां ताने हुए.
उस दिन विद्रोही दिल्ली में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दफ्तर के सामने सरकार की शिक्षा नीतियों के विरोध में हो रहे धरना-प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे थे. दोपहर बाद अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. वहां पर मौजूद लोगों ने उन्हें फौरन अस्पताल पहुंचाया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
साहित्यिक हलकों में विद्रोही भले ही वे अनजान थे, लेकिन छात्रों और कविता प्रेमियों के बीच खासे मशहूर. वे कबीर और अदम गोंडवी की परंपरा के अनुयायी थे.
विद्रोही वाचक परंपरा के कवि थे. खुद को नाजिम हिकमत, पाब्लो नेरूदा और कबीर की परंपरा से जोड़ने वााले इस कवि को अपना रचनाकर्म जुबानी याद था. उन्होंने कभी अपनी कविताओं को लिखा नहीं. यह काम उनके मुरीदों ने किया. विद्रोही के ऐसे ही कुछ प्रशंसकों ने उन्हें एक अनूठे वीडियो के जरिये श्रद्धांजलि दी है. उनकी चार चर्चित कविताएं इस वीडियो का हिस्सा हैं.
इस वीडियो के सूत्रधार और दिल्ली आर्ट फाउंडेशन के संस्थापक प्रत्युष पुष्कर कहते हैं, ‘मैं भी जेएनयू में ही पढ़ा हूं. विद्रोही जी से बहुत करीब का नाता था. तीन साल पहले पढ़ाई पूरी करके वहां से निकल गया था. फिर अपने काम में व्यस्त हो गया. इस बीच कई बार सोचा, लेकिन उनसे मिलना नहीं हो पाया. फिर अचानक उनके जाने की खबर सुनी बहुत धक्का लगा. वे जितने सक्रिय रहते थे उसे देखते हुए सोचा नहीं था कि वे अचानक यूं चल देंगे.’ वे आगे कहते हैं, ‘मन में बहुत बेचैनी थी.
सभार - सत्याग्रह